आग और तेजाब की भाषा आलोचना नहीं होती
अमृतलाल नागर का लेखन संसार
हिन्दी के श्रेष्ठ कथाकार अमृतलाल नागर के बेहतरीन
व्यंग्य-लेखन से सुधीजन भली-भाँति परिचित हैं। उनके विस्तीर्ण विषय-फलक में
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से लेकर तात्कालिक घटना तक का कोई विषय बचा नहीं रहा। उनके जीवन एवं सृजन पर कई शोध हुए, कई पुस्तकें छपीं। किन्तु उनके
व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित विलक्षण व्याख्या से भरी प्रसिद्ध समालोचक
मधुरेश की पुस्तक ‘अमृत लाल नागर: व्यक्तित्व और
रचना-संसार’ अपनी तरह की अलग पुस्तक है।
दस अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक की भूमिका में मधुरेश ने
लिखा है कि ‘लेखक की अन्तःप्रकृति को समझ और पकड़कर
ही कोई सार्थक आलोचना सम्भव है।’
इस आलोचनात्मक कृति
में आलोचक ने लेखक की अन्तःप्रकृति को समझने की यथेष्ट निष्ठा दिखाई है। यह पुस्तक
एक साथ व्याख्यात्मक भी है,
परिचयात्मक भी, और संस्मरणात्मक भी। मधुरेश, अमृतलाल नागर के करीबियों में से हैं।
पूरी पुस्तक के दसो निबन्ध किस समय संस्मरण हो जाते हैं और कब नागर जी की रचनाओं
की व्याख्या--यह तय कर पाना कठिन प्रतीत होता है।
विदित है कि अमृतलाल नागर का रचनात्मक परिदृश्य आकार से भी बड़ा
है, आयाम और विषय से भी। कथात्मक आनन्द देती
हुई मात्र एक सौ बहत्तर पृष्ठों की इस पुस्तक में प्रसिद्ध आलोचक मधुरेश ने
व्याख्या की इतनी प्यारी और सूक्ष्म शैली अपनाई है कि रचनाकार की जीवन-पद्धति और
रचना-कर्म, दोनो जीवन्त हो उठता है।
व्यक्तित्व की खोज, धरती
में गहरी जड़ों वाला महावृक्ष,
टुकड़ों और चिप्पियों
से बनी आत्मकथा, साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि, नागर जी के उपन्यास, कहानीकार अमृतलाल नागर, नरक से साक्षात्कार, रामविलास शर्मा के बहाने, अठारह सौ सत्तावन की राज्यक्रान्ति औेर
अमृतलाल नागर...जैसे शीर्षकों से ही पुस्तक के लक्ष्य दिग्दर्शित हो जाते हैं।
‘अठारह
सौ सत्तावन की राज्यक्रान्ति और अमृतलाल नागर’ शीर्षक
से पाठकों को थोड़ा अचरज हो सकता है। असल में यह शीर्षक इसलिए लिया गया कि इस विषय
को केन्द्र में रखकर वे एक उपन्यास लिखना चाहते थे, जो
हो नहीं सका। ‘शतरंज के मोहरे’ उपन्यास इस घटना से दो दशक पूर्व समाप्त
हुआ, जहाँ भावी क्रान्ति की सुगबुगाहट सुनाई
पड़ती है। नागर जी सन् सत्तावन की घटना को अवध, कुरुक्षेत्र, मगध में घटित मानते थे। वस्तुतः रचनाओं
की अन्तःप्रकृति को जानकर ही किसी रचनाकार के जीवन-क्रम एवं उनकी रचना-प्रक्रिया
को जाना जा सकता है। मधुरेश अपने आलोच्य रचनाकार अमृतलाल नागर की इस अन्तःप्रकृति
से परिचित हैं। इस अध्याय में मधुरेश ने सन् सत्तावन से सम्बन्धित नागर जी के
चिन्तन के दायरे को रेखांकित किया है।
‘नरक
से साक्षात्कार’ शीर्षक लेख में मधुरेश ने नागर जी की उन
भावनाओं को रेखांकित किया है जो ‘ये कोठेवालियाँ’, ‘नाच्यो बहुत गोपाल’ जैसी रचनाओं में तब्दील हुई हैं। नारकीय
और गलीज जीवन जीने वाली जनता को केन्द्र में रखकर लिखी गई रचनाओं की व्याख्या
मधुरेश ने इस अध्याय में की है। इसी तरह ‘रामविलास
शर्मा के बहाने’ चर्चा शुरू कर, रामविलास जी के वक्ताओं के सहारे कहाँ
के तार कहाँ जोड़ दिए गए--यह विलक्षण वर्णन शैली का सूचक है।
यदि रचनाकार का सारा साहित्य पढ़ा न हो, तो कई बार उसकी गम्भीर आलोचना ऊब पैदा
करने लगती है। पर इस पुस्तक की सबसे महत्त्वपूर्ण बात इसकी ताजगी और रवानगी भरी
भाषा है, जो किसी भी तरह पाठकों को विचलित होने
की इजाजत नहीं देती। कविता में संक्षिप्तता का सहारा तो बिम्ब और प्रतीक रहता है
पर आलोचना में व्याख्या ही महत्त्वपूर्ण होती है। और, व्याख्या को संक्षिप्त करने पर भी उसमें
औत्सुक्य बना रहे, पाठकों पर उसकी पकड़ शक्ति कभी ढीली न हो, यह लेखक की सधी हुई भाषा, मँजी हुई दृष्टि और गहन अध्ययन से ही
सम्भव है। ‘अमृतलाल नागर: व्यक्तित्व और रचना संसार’ शीर्षक अध्याय इस दृष्टि से गागर में
सागर है। इतने परमाण्विक ढंग से अमृतलाल नागर जी जैसे बड़े रचनाकार की
वृत्ति-व्याख्या वस्तुतः एक कठिन कार्य है, जिसे
मधुरेश ने सुचिन्तित ढंग से सम्पन्न किया है।
पुस्तक के परिशिष्ट में दर्ज अमृतलाल नागर के जीवन की
महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण एवं उनकी रचनाओं की सूची अलग से व्याख्येय है।
अमृतलाल नागर का लेखन
संसार,
हिन्दुस्तान
(दैनिक,
नई
दिल्ली),
02.07.2000
अमृतलाल नागर: व्यक्तित्व और रचना संसार, मधुरेश, राजपाल
एण्ड सन्स, दिल्ली/पृ.176, रु.150.00
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