Tuesday, March 17, 2020

स्वछन्द प्रतीकों के कवि (विजय किशोर मानव का कविता संग्रह ‘राजा को सब क्षमा है’)



स्वछन्द प्रतीकों के कवि  

विजय किशोर मानव का कविता संग्रह राजा को सब क्षमा है

हिन्दी कविता वर्तमान समय के असंख्य संकटों से जूझ रही है। आज का कवि भी आलोचकों, सम्पादकों, चर्चाओं की झाड़ियों में उलझ रहा है, उलझने से बच रहा है, उलझाया जा रहा है और उलझने से उसे बचाया जा रहा है। साहित्य की दुनिया में इन दिनों चल रही हवाओं के कारण सृजन करना और कृति के माध्यम से चर्चा में आना अलग-अलग बात है। चर्चित होने के लिए जिस प्रतिभा और जिस कला की जरूरत होती है, वह कई प्रतिभाशाली रचनाकारों के पास नहीं होती। विजय किशोर मानव, हिन्दी के ऐसे ही कवि हैं।
विजय किशोर मानव ने गीत, गजल, कविता, कहानी तथा समीक्षा--सभी विधाओं में लेखन कार्य किया है। राजा को सब क्षमा हैउनका ताजा कविता संग्रह है और यह संग्रह प्रथम ऋतुराज सम्मान से पुरस्कृत हुआ है। काव्य विधा में यह कवि का दूसरा संकलन है। इससे पूर्व इनके गीतों का संग्रह गाती आग के साथहिन्दी अकादमी के कृति सम्मानसे पुरस्कृत हुआ था।
राजा को सब क्षमा हैसंकलन में मानव की बावन कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं को कवि ने चार खण्डों में बाँटा है--सिर्फ सच नहीं, अपने समय से, अन्तरंग, शरशैया। जाहिर है कि कवि ने इन उपशीर्षकों में सजाई कविताओं का कोटि निर्धारण बड़ी महीनी से किया है। कवि ने स्वयं कहा है कि ये कविताएँ एक तरह से छोटी-छोटी कहानियाँ भी हैं।इन कविताओं के पाठ के समय ऐसा प्रतीत भी होता है। सम्भवतः उनके बहुविधावादी होने के कारण ऐसा होता हो, पर उनकी ज्यादातर कविताओं की अलग-अलग पंक्तियाँ पूरे दम-खम से सामने आती हैं। पूरी कविता अपने कथन में कथा और प्रभाव में कविता का असर छोड़ती हैं।
ये कविताएँ न केवल राजनीतिक और सामाजिक जीवन के अन्तर्विरोधों को उकेरती हैं बल्कि पूरे मानव-जीवन की समग्रता दर्ज करती हैं। यहाँ मनुष्य के सुखमय क्षण भी हैं, दुखमय राग भी हैं, बुद्धि-बल-भावनामय मानवता और प्रतिबद्धता भी है। वरिष्ठ कवि-समालोचक रामदरश मिश्र की बातें इस मायने में समीचीन लगती हैं कि इन कविताओं में सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की क्रूरताओं और अन्तर्विरोधों की बहुत प्रामाणिक पहचान दिखाई पड़ती है, किन्तु इनके प्रति द्रष्टा की निस्संगता नहीं है वरन एक भोक्ता का दर्द है, जो कलात्मकता का निर्वाह करते हुए भी उसी पर समाप्त नहीं होता बल्कि उसके माध्यम से कविता को मनुष्यता में पर्यवासित कर देता है।
हर कवि की रचना कवि की जीवन-दृष्टि और कवि के जीवन-दर्शन का उदाहरण होती है। रचनाओं में शब्दों के प्रयोग, बिम्ब योजना, प्रतीक योजना, उपस्थापन शैली, वाक्य संरचना...सबके-सब कवि के आत्मिक संस्कार और जीवन दर्शन के उदाहरण होते हैं। जाहिर है कि विजय किशोर मानव की रचना में भी ऐसा होगा। प्रतीकों के आयोजन में कवि बड़े सावधान दिखते हैं। सूर्य के साथ हूँ मैंकविता में सूरज की तमाम अच्छाई-बुराइयों की चर्चा के बाद कवि कहते हैं
मेरी आदत है
रात के विरुद्ध दीपक की भूमिका में
सूर्य के अक्स देखना
शायद इसीलिए कि/मैं सूर्य के साथ हूँ।
कविता की यह छोटी-सी टुकड़ी कवि और कवि के जीवन दर्शन का एक बड़ा-सा ग्राफ सामने रखती है, जहाँ कवि अन्धकार के खिलाफ अपने संघर्ष को बनाए रखने के लिए सूरज के साथ रहना कितना जरूरी मानते हैं।
सदा उध्र्वगामी और मुक्तिकामी तथा स्वच्छन्द प्रतीकों को पकड़ने वाले कवि विजय किशोर मानव की नजर यदि चिड़िया, सूर्य, शिखर, गीत, नदी आदि प्रतीकों को जमा करती है तो वह अकारण नहीं है। संघर्षरत आदमी की लालसाएँ, उसकी प्रतिबद्धता और उसके लक्ष्य भी उनकी कविताओं में अपनी पूरी अस्मिता के साथ आते है। स्वच्छन्दता की दुहाई और परवशता के प्रति क्रोध इन कविताओं में जी रहे-से प्रतीत होते हैं। बदलते रिश्ते, चिड़िया के गीत, राजा को सब क्षमा है, हथियार, मकान-घर और जंगल, पेड़, चिड़िया, यज्ञ की राख, उधार है वसन्त आदि कविताओं के माध्यम से कवि के इस अभिप्रेत को जाना जा सकता है।
कुल मिलाकर संकलन की कविताएँ इस बात से आश्वस्त करती हैं कि कविता में दूर की कौड़ी पकड़ लाना बहुत आवश्यक नहीं। यदि कवि के पास दृष्टि हो और आसपास की परिस्थितियों को जानने-पहचाने की तमन्ना हो तो कविता स्वयं दूर की कौड़ी ले आती है और उसके बरक्स आसपास की कौड़ियों की पूरी अहमियत साबित कर देती है। विजय किशोर मानव, यह साबित करने में सफल हुए हैं।
--ने.बु.ट्र.संवाद
राजा को सब क्षमा है, विजय किशोर मानव, किताबघर, पृ. 118, रु. 90.00

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