असमानता का दस्तावेज
(अमर गोस्वामी का चौथा कहानी संग्रह 'उदास राधोदास')
उदास राधोदास अमर गोस्वामी का चौथा कहानी संग्रह है। ग्यारह
कहानियों के इस संग्रह में लेखक ने गाँव से लेकर शहर तक के विभिन्न तबके से कहानी
की विषयवस्तु जुटाई है। लेखक के सामने एक लम्बा-सा अनुभव है और समाज की विसंगतियाँ
हैं। इन दोनों तत्त्वों को चित्रित करने में उन्होंने मानव जीवन के गहन पक्षों को
उकेरने का प्रयास किया है। जिस सामाजिक व्यवस्था में पशुवत श्रम करते रहने के
बावजूद मनुष्य दो जून रोटी और तिनका भर आत्मसम्मान पाने को तरसता रह जाता है, और दूसरी तरफ अपने श्रम-फल पर औरों को
ऐशो-आराम से जीवन-बसर करते देखता है, तो
क्रोध-ज्वाल और असन्तोष से उद्वेलित होने का सहज अधिकार उसे है।
‘फलाफल’ कहानी के पात्र त्रासद जीवन जीने के लिए
अभिशप्त है। अर्थाभाव की समस्या जकड़ी हुई है पर अपनी इस दशा को भाग्य का फल मान
लेता है। तमाम लालसाएँ भुलाकर अभाव की दुनिया में जीने का वह एक अलग संविधान गढ़
लेता है। अपने पुत्र को पढ़ाते वक्त इसके नायक अपनी विवशता को ढककर उसे ‘सेव’ की
गलत परिभाषा देता है और फल को अपने स्वास्थ्य के लिए बुरा असर डालने वाला मानता
है। नायक का पुत्र जब इस विसंगति का अर्थ समझते हुए इसे मिटाने का प्रयास करता है, तो व्यवस्था उसे लुहूलुहान कर देती है।
पर अन्ततः वह एक फल लाकर पिता के हाथ में दे ही देता है। परवर्ती पीढ़ी के
लक्ष्य-सन्धान और सफलता के इस चित्रण से कथाकार ने विलक्षण सन्देश दिया है।
‘घर-बाहर’ कहानी का नायक एक छोटा-सा कर्मचारी है, अपने कर्मचारी संघ का नेता है, अपने परिवार का मुखिया है और एक उद्दण्ड
पदाधिकारी का मातहत है। इन तमाम जवाबदेहियों को पूर्णता देने में इस नायक को घोर
अन्तर्विरोध से गुजरना पड़ता है। पारिवारिक बोझ ढोते-ढोते, अभाव में जीते-जीते यह आदमी भीतर से
कमजोर हो जाता है। यह कमजोरी बार-बार उसे दायित्व बोध कराती रहती है। इस कुण्ठा
में जीता हुआ यह मानव अपने अफसर की डाँट सुन-सुनकर और कुण्ठित होता जाता है। इस
पूरे प्रकरण में घुट-घुटकर वह निरन्तर कमजोर होता जाता है, क्रमशः उसका आत्मविश्वास खो जाता है। हर
जगह वह एक पुतला भर बना रहता है। पर इसमें भी उसकी सन्तान साहसी निकलता है।
शैशवावस्था से ही उसमें एक जोश है। मनुष्य के मस्तिष्क में चलती जिन आँधियों को इन
दोनों कहानियों में व्यक्त किया गया है, उसका
विकसित रूप ‘बोहनी’ कथा
में है। यहाँ समाज के सारे सरकारी,
गैरसरकारी अवांछित
तत्त्व जमा हो जाते हैं। इस कहानी में लेखक ने मनुष्य की हैवानी का चित्र प्रस्तुत
किया है। पुलिस और इलाके के गुण्डों से परेशान ‘हरिया’ मुँह से आवाज नहीं निकाल पाता है। घर के
बीमार बच्चे की चिन्ता उसे खाए जा रही है। पान की दुकान में बोहनी हो और कुछ पैसे
कमा पाए, तो उससे बेटा स्वस्थ होगा। इस उद्देश्य
से बार-बार शकुन बिगड़ जाने पर टोटका करता है, पर
सब व्यर्थ हो जाता है। इन सारी परेशानियों से त्रस्त हरिया मानसिक उद्वेग में जीता
रहता है। इन परिस्थितियों से लड़ नहीं पाता है। लड़ना उसके वश की बात नहीं रह पाती
है। आम नागरिक की यही विवशता ‘कविगाथा’ कहानी
के कवि अथवा ‘गोविन्द गाथा’ के कथा गायक या ‘उदास राघोदास’ के राघोदास की है। हर जगह कथाकार एक
छोटी-सी घटना के इर्दगिर्द अपना कथा संसार बनाता है। ‘अपना उत्सव’, ‘दलपति का सौभाग्य’ और ‘हकीकत’--कहानियाँ, शिल्प
के स्तर पर अपेक्षाकृत कमजोर हैं। शिल्पगत कमजोरी के कारण ये कहानी से अधिक
रिपोर्ट अथवा वक्तव्य लगती हैं।
-असमानता का दस्तावेज, जनसत्ता, नई दिल्ली, 17.05.1992
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