आरम्भिक युग से ही उर्दू भाषा में रचनात्मक गद्य की परम्परा
देखने को मिलती है। उर्दू की विकास यात्रा बहुत लम्बी है और इस यात्रा में आने
वाली हर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक या धार्मिक परिस्थिति को इस
रचनात्मक गद्य में स्थान मिला है। मुद्दत से चली आ रही इस भाषा की साहित्यिक धरोहर
आज भी हमारे लिए मूल्यवान है।
उर्दू गद्य लेखन आज अपने मूल्यवान तेवर में है। इस विधा को
बुलन्दियों तक पहुँचाने का श्रेय प्रेमचन्द, ख्वाजा
अहमद अब्बास, कृष्ण चन्दर, सआदत हसन मण्टो, राजेन्द्र सिंह बेदी, इस्मत चुगताई, कुर्रतुल-एन-हैदर, गयास अहमद गद्दी, इलियास अहमद गद्दी तथा ऐसे ही कई अन्य
महान कथाकारों को जाता है ।
फायर एरिया उपन्यास इलियास अहमद गद्दी की एक महत्त्वपूर्ण कृति
है। अपने उपन्यासों में समसामयिक समस्याओं का चित्रण करने में उन्हें महारत हासिल
है। जनसरोकारी कथ्य की तरलता के साथ-साथ उनकी भाषा-शैली सरल और सरस है।
देहात की गरीबी,
बेहाली और भुखमरी
अक्सर मनुष्य को इस कदर तोड़ देती है कि वह इससे मुक्ति पाने के लिए प्रकृति की गोद
को छोड़कर शहर की बदबूदार गन्दी गलियों में जीने को विवश हो जाता है और फिर बदनसीबी
जैसे पूरी तरह उसे अपने गिरफ्त में जकड़ लेती है। दिन भर की कड़ी मेहनत के बावजूद वह
रहन-सहन के निम्नतम स्तर से ऊपर नहीं आ पाता। जमीन्दारों और पूँजीपतियों के इशारों
पर नाचना उसकी किस्मत बन जाती है। इस चक्रव्यूह से निकलने की वह लाख कोशिश करता है, पर नियति से बाहर आना उसके लिए सम्भव
नहीं हो पाता। इस उपन्यास के नन्कू,
रहमत, कालाचन्द जैसे अनगिनत पात्र इसी नियति
के शिकार हैं और इन पात्रों की भावनाओं और मानसिक उथल-पुथल को लेखक ने बड़े ही
प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है ।
इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने समाज के उस वर्ग का भी
पर्दाफाश किया है जो अर्थसम्पन्न हैं, और
स्वैराचार के सामने तनकर खड़े हुए हर व्यक्ति को रास्ते से हटाने के लिए दारू और
पैसे का सहारा लेते हैं। बड़े कहलाने वाले ये लोग कुमार बाबू जैसे क्रान्तिकारी
व्यक्ति को उठवा लेते हैं,
उनकी पिटाई कराते हैं
और अधिकार-प्राप्ति के लिए उठाए गए हर कदम को कुचलवा देते हैं, जो इस उपन्यास के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष
की ओर इशारा करता है ।
कोयले की काली बस्ती, कोलियरी
में रहनेवाला हर व्यक्ति अपने रंग में रंगा दिखाई देता है। भोग-विलास और व्यभिचार
के बहुत सारे खुले हुए दृश्य यहाँ सामने आते हैं। यूनियन और कोलियरी के मालिकों की
साँठगाँठ को भी उपन्यासकार ने बड़ी खूबसूरती से बेनकाब किया है।
सहदेव और मजूमदार इस उपन्यास के दो सबसे प्रमुख पात्र हैं।
दोनों पात्रों के माध्यम से दो भिन्न विचारों और सोचने के ढंग को स्पष्ट करने का
प्रयास किया गया है। मजूमदार समाज बदलने के लिए उपद्रव मचाने में विश्वास नहीं
रखता। इसलिए सहदेव द्वारा अपनाए गए रास्ते को देखते हुए वह समाज के निर्माण के
बजाए समाज को विनाश की ओर ले जाना चाहता है। लेकिन अन्ततः वह स्वयं भारद्वाज की
खूनी साजिश का शिकार होकर मौत की आगोश में पहुँच जाता है।
सहदेव को अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा है, वह सच बोलने से नहीं डरता, अपनी उसी निर्भीकता के कारण वह बेरहमी
का शिकार होता चला जाता है। अपने अधिकारों को पाने में नाकाम रहने पर वह हिंसा का
रास्ता अपना लेता है और मजूमदार से कहता है, ‘यह
गलत है कि मैंने अपने आपको बेचा है। मैंने सिर्फ इस सच को पहचान लिया है कि अगर
कोलफील्ड में रहना है तो ताकत हासिल करनी होगी। एक ऐसी ताकत जिससे टकराने का, जिसके नजदीक आने का कोई साहस न कर सके।’
मजूमदार की हत्या होने के बाद वह समझ पाता है कि हिंसा का
रास्ता अन्ततः विनाश की ओर ही ले जाता है।
सामाजिक विसंगतियों को प्रभावी ढंग से उकेरता और उसका समाधान
तलाशता यह उपन्यास इलियास अहमद गद्दी की एक बेहतरीन और पठनीय कृति है।
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