Saturday, November 2, 2019

अनुवाद के कन्‍धे पर वैश्‍वि‍क बाजार The Global Market on Translation's Shoulder










अनुवाद की उपादेयता जन-संवाद के आरम्‍भि‍क काल में ही सि‍द्ध हो गई थी। जन-जन के जीवन में भाषि‍क-प्रतीक के आगमन काल से ही। कि‍न्‍तु उस दौर में इसका उपयोग जनजीवन की समझ बनाने तथा ज्ञान-फलक का वि‍स्‍तार करने में होता था। द्वि‍तीय वि‍श्‍व-युद्ध के बाद अन्‍तर्राष्‍ट्रीय राजनीति‍क सम्‍बन्‍धों की मुखर शृंखला चली; तो यह राजनीति‍क-संवाद के लि‍ए महत्त्‍वपूर्ण हो गया। भारत की बहुभाषिकता, अन्‍तर्राष्‍ट्रीय कूटनीतिक सम्बन्ध की अनि‍वार्यता, सीमावर्ती स्वायत्तता के मद्देनजर इसकी पहले से ही व्‍यवस्‍थि‍त इसकी उपादेयता सुनि‍श्‍चि‍त हो गई। आगे के दि‍नों में भारतीय उपमहाद्वीप में संचालि‍त फि‍रंगी-शासन की कुटि‍लता ने इस पवि‍त्र कर्म को दूषि‍त कर दि‍‍‍या। भारतीय ग्रन्‍थों के अंग्रेज सम्‍पोषि‍त अनुवाद के कारण दुनि‍या भर के बौद्धि‍कों का सामना पहली बार दूषि‍त अनुवाद से हुआ। यहाँ से अग्रसर अनुवाद-कर्म की परख राजनीति‍क उद्यम/ति‍कड़म के हि‍स्‍से के रूप में होने लगी। अब अनुवाद ज्ञान-वि‍स्‍तार का साधन भर नहीं रह गया। साम्राज्‍य-वि‍स्‍तार के आखेटकों ने मूल-पाठ के भाव को जुगाड़ तकनीक से लक्ष्‍य-भाषा के पाठ में तोड़-मरोड़ शुरू कि‍या। अब वाक्‍यों, पदों, शब्‍दों, वर्णों, वि‍राम चि‍ह्नों के बीच छुपे हुए अर्थ-ध्‍वनि‍यों की तलाश और व्‍याख्‍या होने लगी। अनुवाद-कर्म एवं अनुवादकों को इस व्‍याख्‍या की चतुराई का घातक परि‍णाम भोगना पड़ा। पर तथ्‍य है कि‍ दुष्‍ट कि‍तनी भी दुष्‍टता कर ले, सद्कर्मी अपने सद्मार्ग नि‍काल ही लेते हैं। भारतीय नवजागरण और हि‍न्‍दी नवजागरण के अग्रदूतों ने अनुवाद एवं अनूद्य पाठ के चयन के अपने कौशल से प्रदूषि‍त अनुवाद से प्रसारि‍त इन 'वि‍चि‍त्र धारणाओं' को ध्‍वस्‍त कर दि‍या। राजा राममोहन राय से शुरू हुई भारतीय ग्रन्‍थों के अंग्रेजी अनुवाद की परम्‍परा आर.सी.दत्त, दीनबन्‍धु मित्र, अरबिन्‍द, रवीन्द्र नाथ टैगोर एवं आगे के अनुवादकों तक आई; इसी तरह राष्‍ट्रीय भावना, देशदशा, आधुनिक चिन्‍तन और ज्ञान-विज्ञान से भारतीय समाज को परिचित कराने के लि‍ए भारतेन्दु हरिश्चन्‍द्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, रामचन्‍द्र शुक्‍ल से शुरू हुई अंग्रेजी ग्रन्‍थों के हि‍न्‍दी अनुवाद की परम्‍परा आगे बढ़ी। मर्चेण्‍ट ऑफ वैनिस (शेक्‍सपियर), एजुकेशन (हर्बर्ट स्पेन्‍सर), ऑन लिबर्टी (जान स्टुअर्ट मिल), रिडिल ऑफ यूनीवर्स (जर्मन वैज्ञानिक अर्न्स्ट हैकल), स्वदेशी भावना और राष्ट्रीय चेतना जगानेवाली पुस्‍तक 'देशेर कथा' के हि‍न्‍दी अनुवाद ने भारत के स्‍वाधीनता सेनानि‍यों को आत्‍मगौरव से पुष्‍ट कि‍या। फि‍र तो यूरोपीय एवं भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद की लहर-सी चल पड़ी। भारतीय भाषाओं में अनेक पारस्परि‍क अनुवाद भी शुरू हुए।
राजनीति‍क हि‍त-साधन में अनुवाद की उक्‍त कुटि‍ल प्रयुक्‍ति‍ का दुष्‍परि‍णाम हुआ कि‍ स्‍वातन्त्र्योत्तरकालीन भारत में अनुवाद-कर्म एक जोखि‍म भरा काम हो गया। इस वृत्ति‍ पर अनाहूत आशंकाओं का इतना बोझ लाद दि‍या गया कि‍ सुदक्ष अनुवादकों के लि‍ए भी यह काम संवेदनशील हो गया। इसके साथ-साथ एक अच्‍छी बात यह भी हुई कि‍ शासनाध्‍यक्षों एवं व्‍यवसायि‍यों की नजर में अनुवादकों का महत्त्‍व बहुत बढ़ गया। स्‍वाधीनता-पूर्व के दि‍नों में भारतीय बौद्धि‍क समुदाय जो अनुवाद स्‍वान्‍त:सुखाय एवं राष्‍ट्र-जन हि‍त में अनासक्‍त रूप से कर रहे थे, स्‍वातन्त्र्योत्तरकाल में वह सत्ता-संचालन का अनुषंग कार्य हो गया। शासन-व्‍यवस्‍था में संलि‍प्‍त लोगों को अनुवाद-कर्म की जरूरत समझ में आने लगी। राजभाषा के रूप में हिन्दी की स्‍वीकृति‍ और त्रि‍भाषा-सूत्र लागू होने से अनुवाद की महत्ता और ऊँची हुई। सितम्बर 14, 1949 को हिन्दी राजभाषा के रूप में स्‍वीकृत हुई, तदनुसार संविधान में राजभाषा के सम्बन्ध में धारा 343 से 352 तक की व्यवस्था की गई। आगे चलकर सरकारी/गैरसरकारी कार्यालयों में राजभाषा प्रकोष्‍ठ भी बने। इन शासकीय प्रयासों से अनुवाद-कर्म से रोजगार और उपार्जन के अवसर सामने आए। जन-संचार एवं प्रकाशन व्‍यवसाय के वि‍कास के कारण भी अनुवाद के अवसर बढ़े। पर्यटन के वि‍कास से अनुवादकों/दुभाषि‍यों की माँग बढ़ी। सरकारी काम-काज में हि‍न्‍दी की अनि‍वार्यता के कारण अनुवाद-कार्य लाभदायी दि‍खने लगा। व्‍यवस्‍था संचालन और सभ्‍यता संचरण के लि‍ए अनुवाद अनि‍वार्य साधन बन गया। आधुनि‍क समय के सूचना-सम्‍पन्‍न नागरि‍क होने के लि‍ए इसकी महत्ता तो पहले ही प्रमाणि‍त हो चुकी थी।
उल्‍लेख सुसंगत होगा कि‍ बाजार के वाणि‍ज्‍यि‍क वि‍स्‍तार में इस बौद्धि‍क पहल की बड़ी भूमि‍का सि‍द्ध हुई। स्‍वयं में तो इसका बाजार-मूल्‍य ऊर्जस्‍वि‍त था ही; जीवन-व्‍यवस्‍था के सारे क्षेत्रों में इसकी उपादेयता स्‍वत: प्रमाणि‍त थी; सुदक्ष अनुवाद कौशल हासि‍ल कर आज असंख्‍य व्‍यक्‍ति‍ रोजगार पा रहे हैं। स्‍वच्‍छन्‍द काम करते हुए भरण-पोषण के संसाधन आराम से जुटा रहे हैं। अनुवाद-एजेन्‍सि‍यों की बेशुमार नि‍र्मि‍ति‍याँ देखकर यकीन करना सहज है कि‍ इस समय भारत एवं दुनि‍या के अन्‍य देशों में भी अनुवाद एक उपयोगी कौशल है। इस कौशल को हासि‍ल कर लेनेवाला व्‍यक्‍ति‍ अपने समय का आत्‍मनि‍र्भर नागरि‍क होगा, और भव्‍य-कुलीन-सफल जीवन बि‍तानेवालों के बीच गर्व से गरदन ताने जीवन-बसर करता रहेगा।
संज्ञान सुखद है कि‍ वि‍गत पाँच-छह दशकों में नि‍जी उपादेयता के तौर पर अनुवाद की पहचान शासन-व्यवस्था, राष्ट्रनिर्माण के सन्‍देश, मानवीय सौहार्द के संवर्द्धन, वाणिज्य, औद्योगि‍क वि‍कास, प्रबन्धन-पद्धति, विचार विनिमय, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, कला-साहित्य-संस्कृति के वि‍कास के अनि‍वार्य घटक के रूप में बनी है। ज्ञान की विभिन्‍न शाखाओं में बेहतर उच्च शिक्षा एवं पेशागत ज्ञान में दक्षता हासिल करने में अनुवाद के सूक्ष्मतर उपयोग हो रहे हैं। शुद्ध अनुवाद के अलावा अध्‍यापन, प्रशि‍क्षण, प्रशासन, राजनीति, अन्‍तर्राजीय संस्‍कृति‍क जनसम्‍पर्क, अन्‍तर्राष्‍ट्रीय राजनीति‍क सम्‍बन्‍ध, निर्वचन, संचार माध्‍यम, व्‍यापार, पारम्‍परि‍क व्‍यवसायों के प्रोन्‍नयन, कृषि, स्‍थापत्‍य, साहि‍त्‍यि‍क-सांस्‍कृति‍क-राजनीति‍क आदन-प्रदान, प्रकाशन, सि‍नेमा सब टाइटलिंग, रूपान्‍तरण, दूरदर्शन, वि‍ज्ञापन, पर्यटन, खेल-कूद...सभी क्षेत्रों में इस कौशल की उपादेयता प्रमुख हो गई है। यकीनन इस कारण सुदक्ष अनुवादकों के लि‍ए रोजगार के मार्ग प्रशस्‍त हुए हैं। इसके साथ-साथ यह बड़ा सच है कि कोई मनुष्‍य अपने समय के वैश्‍वि‍क परि‍दृश्‍य का सूचना सम्‍पन्‍न जाग्रत नागरि‍क अनुवाद के सहयोग के बि‍ना हो ही नहीं सकता। लि‍हाजा अनुवाद का अपना बाजार-मूल्‍य तो वर्चस्‍व में है ही, बाजार की परि‍पुष्‍टि‍ में भी यह जबर्दस्‍त योगदान दे रहा है।
वैश्‍वि‍क व्‍यवसाय के क्षेत्र-वि‍स्‍तार में अनुवाद की अनि‍वार्य भूमि‍का है। अनुवाद का सहारा लि‍ए बगैर आज के व्‍यवसायी आम जनता तक पहुँच ही नहीं सकता। अनुवाद के बि‍ना इस समय उत्‍पादक-उपभोक्‍ता के बीच संवाद-सम्‍बन्‍ध स्‍थापि‍त होना असम्‍भव है। बाजार और सि‍यासत की इस वि‍चि‍त्र गाँजामि‍लानी से कम लोग परि‍चि‍त होंगे कि‍ भाषाई फूट से एक पक्ष जन-जन में द्रोह फैलाता है, तो दूसरा अपने उत्‍पाद के वि‍ज्ञापनों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कर उनके कानों में सम्‍मोहन का जादू भरता है। जन-जन तक अपने उत्‍पाद की सूचना पहुँचाने का हर सम्‍भव प्रयास आज के व्‍यवसायी कर रहे हैं। वि‍ज्ञापन के पाठ की वस्‍तुनि‍ष्‍ठता को भलीभाँति‍ समझकर उसके अनुवाद की चेष्‍टा करने, लक्षि‍त उपभोक्‍ता-समूह को सम्‍मोहि‍त करने की तरकीब रचने में आज के अनुवादक कुशल हो रहे हैं। वि‍ज्ञापनों के अनुवाद का भरा-पूरा बाजार व्‍यवस्‍थि‍त हो रहा है। व्‍यवसाय की सम्‍पुष्‍टि‍ एवं संवर्द्धन में अनुवाद का चमत्‍कार व्‍यावहारि‍क तौर पर स्‍पष्‍ट दि‍ख रहा है, बाजार और सि‍यासत की गहन जुगलबन्‍दी का प्रभाव आज के समाज में साफ दि‍ख रहा है।
दुनि‍या भर के बड़े-बड़े व्‍यवसायी अनुवाद की इस उपादेयता से सम्‍मोहि‍त होकर इस ओर आकर्षि‍त हुए हैं। उपभोक्‍ता समूह तक उत्‍पाद की पहुँच और गुणगान उसके वि‍क्रय का मूल आधार है। इन दोनो ही काम के लि‍ए उपभोक्‍ता-समूह की भाषा में लुभावने पदों के साथ उत्‍पाद का वि‍वरण अनि‍वार्य है। लुभावने नारों से लक्षि‍त क्रेता-समाज में उत्‍पाद के लि‍ए सम्‍मोहन पैदा करने को ही वि‍ज्ञापन कहते हैं। वि‍ज्ञापन जि‍तना लुभावना होगा, जन-मन पर उसका असर जि‍तना सम्‍मोहक होगा, उत्‍पादन की बि‍क्री उतनी ही अधि‍क होगी। बाजार की इस लोलुप वृत्ति‍ के कारण सम्‍भवत: पहली बार पूँजीपति‍‍यों को जनभाषा का महत्त्व समझ में आया। उन्‍हें लगा कि‍ खरीदार की भाषा में उत्‍पाद का वि‍ज्ञापन सर्वाधि‍क लाभप्रद है। अन्‍तर्भाषि‍क क्षेत्रों के व्‍यवसायियों के बीच पारस्‍परि‍क सम्‍बन्‍धों की नि‍रन्‍तरता के लि‍ए अनुवाद की यह महत्ता तो पहले से थी; कि‍न्‍तु बाजार के भौति‍क क्षेत्र में भी अनुवाद का महत्त्‍व वैश्‍वि‍क व्‍यवसाय पद्धति‍ से जगजाहि‍र हुआ। लुभावने वि‍ज्ञापन के सहारे दुनि‍या के कोने-कोने के उपभोक्‍तओं तक उत्‍पाद का सम्‍मोहन पहुँचाने के लि‍ए हर व्‍यवसाय में अनुवाद की महत्ता इसी तरह काबि‍ज हुई।



भारत की अपनी उत्‍पादन-क्षमता जैसी भी हो, पर वैश्‍वि‍क संचार-व्‍यवस्‍था के कारण भारतीय बाजार में उत्‍पाद का कोई अभाव नहीं दि‍खता। यहाँ हर कुछ उपलब्‍ध है। जगजाहि‍र है कि कि‍सी देश का बाजार उन्‍नत उत्‍पादन-क्षमता और मजबूत क्रय-शक्‍ति‍ से समृद्ध होता है‍। उत्‍पादन-क्षमता का रि‍श्‍ता कौशल एवं संसाधन से है, जबकि‍ क्रय-शक्‍ति का रि‍श्‍ता रोजगार एवं उपार्जन से। उपार्जन का तो पता नहीं, पर वि‍ज्ञापनों की चकाचौंध बेशुमारी एवं नि‍र्लज्‍ज प्रदर्शन देखकर सामान्‍य अर्थशास्‍त्रीय ज्ञान रखनेवाला व्‍यक्‍ति‍ भी मान बैठा है कि इस वक्‍त उन्‍नत व्‍यावसायि‍कता के लि‍ए भारत एक बेहतरीन बाजार है। क्रय-शक्‍ति बढ़ाने के स्रोत की शि‍क्षा का कोई उद्यम बेशक न दि‍खे, पर गाहे-बगाहे हमें प्रतीत कराया जाता है कि‍ हम वि‍कास के युग में जी रहे हैं । हम तेजी से वि‍कास कर रहे हैं। चूँकि‍ ऐसा हमें बार-बार बताया जाता है; इसलि‍ए हमें मानने में संकोच नहीं करना चाहि‍ए कि‍  हम तेजी से वि‍कास कर रहे हैं। बरहाल...
मनुष्‍य कि‍तने भी तर्कजीवी हो जाएँ, अपनी बौद्धि‍क क्षमता पर उसे कि‍तना भी भरोसा हो जाए, पर तथ्‍यत: हम इस समय कठपुतरी या कि‍ जम्‍बूरे का जीवन जीने को वि‍वश हैं। कोई मदारी है, जो हमें नचा रहा है।‍ हमारा जीवन अपने वश में नहीं है। सबहि‍ नचावत राम गोसाईं/नाचत नर मर्कट की नाईं। यह नाच बाजार में हो रहा है। बाजार स्‍वयं अपने समय के बौद्धि‍कों पर आश्रि‍त रहता है। पर तथ्‍यत: उन्‍हें अपने पराश्रय से उबरने का कौशल मालूम है। वे जि‍न पर आश्रि‍त होते हैं उन्‍हें खरीद लेते हैं। उनके इस कौशल का ही परि‍णाम है कि‍ आज का मनुष्‍य हर पल बाजार में जीता है। समाज-व्‍यवस्‍था एवं दूरदर्शन-चैनलों के हर आचरण से ऐसा स्‍पष्‍ट है। घर बैठा, भोजन करता, टी.वी. देखता मनुष्‍य अचानक से मनत: बाजार पहुँच जाता है। नि‍यति‍ उसे अन्‍य कुछ सोचने की मोहलत नहीं देती। वि‍ज्ञापनों द्वारा उन्‍हें सन्‍तान एवं अपने स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति‍ इतना आतंकि‍त कर दि‍या जाता है; जीवन-मूल्‍य, राष्‍ट्र-मूल्‍य, सम्‍बन्‍ध-मूल्‍य की संवेदना जगाकर उन्‍हें इतना वि‍ह्वल कर दि‍या जाता है कि‍ वह चाहकर भी घर में बैठ नहीं पाता। जेब अनुमति‍ दे चाहे न दे, बेशक कर्ज ले, पर बाजार जाकर बलि‍ का बकरा जरूर बन जाता है। तय है कि‍ व्‍यवसायी समुदाय ने जनता की बौद्धि‍कता खरीदकर जनता को समझा दि‍या कि‍ बाजार के बि‍ना तुम्‍हारा जीवन नि‍रर्थक है!
हर बाजार का प्राथमि‍क लक्ष्‍य क्रेता को सम्‍मोहि‍त करना होता है। इस सम्‍मोहन के लि‍ए भाषा अनि‍वार्य है। इसलि‍ए जादुई सम्‍मोहन से भरी भाषा में उपभोक्‍ता तक पहुँचने की तरकीब व्‍यवसायि‍यों ने भली-भाँति‍ अपना ली है। क्रेता की स्‍थानीयता के मद्देनजर वैश्‍वि‍क बाजार में अपने उत्‍पाद बेचने के लि‍ए स्‍थानीय भाषाओं का सहारा लेना अनि‍वार्य अब हो गया है। व्‍यवसायि‍यों की पारखी नजर जनता का मन टटोलती रहती है। उन्‍हें मालूम है कि‍ जनता दूरदर्शन के चैनल देखे, उपभोक्‍ता-सेवा केन्‍द्र से बात करे, अखबार में वि‍ज्ञापन देखे, पम्‍पलेट पढ़े, ऑनलाइन खरीद करे...उसे अपनी भाषा सम्‍मोहि‍त करेगी। इसलि‍ए वैश्‍वि‍क बाजार की बहुभाषि‍कता के मद्देनजर सारे के सारे व्‍यवसायी अनुवाद की डगर पर चल पड़े हैं। अनुवाद का बाजार इन दि‍नों वाकई गर्म है।
अनुवाद का फैलाव अब जि‍तनी दि‍शाओं में हो चुका है, उनमें यह समझना श्रेयस्‍कर होगा कि‍ यह एक वि‍शेष कौशल है। दो भाषाओं का ज्ञान रखनेवाला हर व्‍यक्‍ति‍ हर वि‍षय के पाठ का अनुवाद नहीं कर सकता। मुक्‍त रूप से काम करनेवाले अधिकांश अनुवादक सोचते हैं कि‍ अनुवाद के लि‍ए दो भाषाओं की जानकारी मात्र पर्याप्‍त है; कि‍न्‍तु ऐसी समझ अनुवादकीय शि‍ष्‍टाचार की अधूरी समझ है। बेहतरीन अनुवाद के लि‍ए स्रोत एवं लक्ष्‍यदोनो भाषाओं की गहन समझ के साथ-साथ दोनो पाठ के भाषि‍क जनपद की संस्‍कृति‍ एवं पाठ के वि‍षय की गहन समझ आवश्‍यक है। व्‍यवसाय की गहन समझ जि‍न्‍हें नहीं है, वे साहि‍त्‍य अथवा तकनीकी अथवा अन्‍य वि‍षयों के पाठ के कि‍तने भी सुदक्ष अनुवादक हों, उनका काम जोखि‍म भरा रहेगा ही। व्‍यवसाय और वि‍ज्ञापन की दुनि‍या के बड़े-बड़े कर्मि‍यों की राय में भी‍ सामान्‍य अनुवाद और व्‍यावसायि‍क अनुवाद में बड़ा फर्क है। जन-सम्‍पर्क, व्यापार के क्षेत्र की बुनि‍यादी विशेषज्ञता हासि‍ल कि‍ए बि‍ना व्‍यावसायि‍क अनुवाद के क्षेत्र में कूद पड़ना घातक है। हर व्‍यवसाय की वि‍पणन पद्धति‍ भि‍न्‍न होती है। वि‍ज्ञापन की सूक्ष्‍म समझ रखनेवाले सारे लोग जानते होंगे कि पुस्‍तक,‍ दाल-चावल-आटा एवं घी-तेल-मसाला, शृंगारि‍क सामग्री, सरकारी योजना और धार्मि‍क घोषणाओं के वि‍ज्ञापनों की भाषा अलग-अलग होगी। जाहि‍र है कि‍ इनके अनुवाद की वि‍धि‍याँ भी भि‍न्‍न-भि‍न्‍न होंगी। उत्‍पादन-गृह (प्रोडक्‍शन-हाउस) की व्‍यावसायि‍क नीति‍यों को समझे बि‍ना इन क्षेत्र-वि‍शेष के पाठ का अनुवाद चुनौतीपूर्ण होगा। फेसबुक, वाट्सैप, ट्वि‍टर पर भ्रष्‍ट अनुवाद के उदाहरण अक्सर देखे जाते हैं। जरूरतमन्‍द कौशलवि‍हीन भ्रष्‍ट अनुवादक धन-लोलुपता के आग्रह में अक्‍सर अज्ञात क्षेत्रों के पाठ का अनुवाद कर डालते हैं। उत्‍पादक भी अक्‍सर न्‍यूनतम अनुवाद-शुल्‍क से काम चलाने के चक्‍कर में ऐसे अनुवादकों से काम करा लेते हैं। इससे उत्‍पादकों का व्‍यवसाय तो आहत होता ही है, अनुवाद-व्‍यवसाय भी सन्‍देहास्‍पद होता है। इससे बचने की जरूरत है। विज्ञापन, प्रेस विज्ञप्ति, बिक्री व्‍याख्‍यान, व्‍यावसायि‍क प्रचार की सामग्री के अनुवाद की अलग सावधानि‍याँ होती हैं। इन पाठों की सैद्धान्‍तिकी और प्रासंगिक ज्ञान में विशेषज्ञता हासि‍ल कर कोई अनुवादक नि‍श्‍चय ही व्‍यावसायि‍क रूप से सक्षम बन सकता है। आखि‍रकार अनुवाद-कर्म भी एक व्‍यवसाय है, जि‍समें कि‍सी अनुवादक की विशेषज्ञता एवं बेहतर सेवा के बदले उनके ग्राहक उन्‍हें बेहतर भुगतान देते हैं। व्‍यापार सम्‍बन्‍धी पाठ के अनुवाद के लि‍ए अनुवादकों का रचनात्मक होना अनि‍वार्य है। स्थानीय भाषा में अनूदि‍त प्रचार सामग्री पढ़कर लक्षि‍त उपभोक्ता जब तक मसूस न करे कि‍ वह बात उसकी भाषा में कही गई है, अनुवाद नि‍रर्थक है। इसलि‍ए व्‍यावसायि‍क पाठ के अनुवाद के लि‍ए दक्ष अनुवादकों की आवश्यकता होती है।
व्‍यापार, सूचना-तन्‍त्र एवं जनसम्‍पर्क का क्षेत्र जि‍तनी तेजी से आगे बढ़ रहा है, इन क्षेत्रों में अनुवाद गुंजाइश भी बढ़ती जा रही है। इस क्षेत्रों में वि‍पुल सामग्री है, जि‍नका अनुवाद जरूरी है। दुनि‍या भर की उत्‍पादक कम्‍पनियाँ अपने दस्तावेजों का अनुवाद स्थानीय भाषाओं में करवाकर वैश्‍वि‍क बाजार में फैलना चाह रही हैं। व्‍यावसायि‍क प्रति‍स्‍पर्द्धा की होड़ में सभी कम्‍पनियों को जन-जन तक पहुँचने की जल्‍दी है। जल्‍दी नहीं पहुँचेंगे तो उनका उत्‍पाद बासी हो जाएगा। उन्‍हें रोज-रोज अपने मुख-पत्र, प्रेस विज्ञप्ति बाजार में पहुँचाने होते हैं। नए-नए ब्राण्‍डों के विस्तार एवं अपनी व्‍यावसायि‍क नीति‍ से क्रेता-समूह को सम्‍मोहि‍त करना होता है। क्षेत्रीय भाषाओं में प्रचार-सामग्री उपलब्‍ध करवाकर लक्षित बाजार में वर्चस्‍व बनाना होता है। इसके साथ-साथ मुहि‍म ऐसा भी हो कि‍ वातावरण अनुकूलित रहे, कोई ऊब न आए, क्‍योंकि‍ यह प्रक्रि‍या नि‍रन्‍तर बनी रहेगी, कभी रुकेगी नहीं। ऐसे में अनुवादकों के दायि‍त्‍व को तौलना तो सहज है।
वि‍क्रेता को हर हाल में क्रेता की भाषा बोलनी पड़ेगीयह व्‍यवसाय का नि‍र्णायक दर्शन है। वि‍गत कुछ दशकों में दुनि‍या भर के छोटे-बड़े व्यवसायी यह नि‍ष्‍कर्ष नि‍काल चुके हैं कि‍ अनुवाद उनकी व्यावसायिक रणनीति का अभिन्न हिस्सा है। वैश्विक सूचना से आक्रान्‍त बाजार के तन्‍त्रजाल से हम भली-भाँति‍ परि‍चि‍त हैं। पूरी दुनिया हमेशा हमारे सामने होती है। भौतिक दूरियों से अब हम आतंकि‍त नहीं होते। ई-कॉमर्स हमारी दि‍नचर्या को प्रभावि‍त और कुछ हद तक नि‍र्देशि‍त करने लगा है। ऑनलाइन मार्केटिंग हमारे जीवन में प्रवि‍ष्‍ट है। दुनि‍या के किसी भी देश की कि‍सी भी कम्‍पनी का उत्पाद हम घर बैठे मँगवाने लगे हैं। पर ऐसे ग्राहकों की अभी भी कमी नहीं है जो अपनी बोली के अलावा कोई दूसरी भाषा नहीं जानते, इसीलिए हर लघु एवं मध्‍यम फलक के व्‍यवसायी अपने वेबसाइट पर स्थानीय बाजारों की क्षेत्रीय भाषाओं की ओर उन्‍मुख हैं। सर्वेक्षण से तथ्‍य सामने आ चुका है कि‍ क्रेता को किसी उत्पाद की सारी जानकारी जहाँ उपलब्ध होगी, वह वहीं से सामान खरीदेगा। व्‍यवसायी सुनि‍श्‍चि‍त कर चुके हैं कि‍ ग्राहकों का भाषा संस्‍कार बदलने की प्रतीक्षा करते हुए समय नष्‍ट करने और अपने व्‍यवसाय को नुकसान पहुँचाने के बजाय हमें ग्राहकों को उनकी भाषा में रि‍झाना चाहि‍ए। वैश्विक बाजार में लक्षि‍त ग्राहकों तक पहुँचने के लिए प्रचार सामग्री के अनुवाद से अधि‍क तेज़ और कुशल तरीका व्‍यवसायि‍यों को कोई नहीं दि‍खता।
व्‍यावसायि‍क प्रचार सामग्री को स्थानीय बनाने से नि‍स्‍सन्‍देह उत्‍पाद की पहुँच उपभोक्‍ता तक होती है; इसके साथ-साथ यह भी सुनिश्चित होता है कि‍ क्रेता तक सर्वाधि‍क पहुँच बनाने में कौन-सी भाषा सर्वाधि‍क सहायक होगी। आम तौर पर सीमान्‍त क्षेत्र के क्रेता की भाषा छोटी-छोटी कम्‍पनि‍यों के लि‍ए लाभप्रद होती है, कि‍न्‍तु लक्षित बाजार के लि‍ए मुद्रण और वितरण की लागत का ध्यान भी उन्‍हें रखना होता है। नए बाजार में आते ही नए ग्राहक अपनी स्थानीय भाषा में ग्राहक-सेवा सामग्री की अपेक्षा करने लगते हैं। शुरू-शुरू में यह कम्‍पनी के बजट को प्रभावि‍त अवश्‍य करता है, कि‍न्‍तु शीघ्र ही उसकी लाभप्रद परि‍णति‍ सामने लगती है। ऐसा तभी लाभप्रद होगा जब प्रभावी अनूदि‍त पाठ बाजार में रहेगा।







No comments:

Post a Comment

Search This Blog