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मंगलेश डबराल के साथ देवशंकर नवीन
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हमारे बीच से एक ऐसे कवि चले गए, जिन्होंने परवर्ती पीढ़ी को बनने में अहम् भूमिका निभाई; अपने कनिष्ठों में कभी कनिष्ठ होने का भाव नहीं आने दिया। उनके पास इतना स्नेह था कि लेनेवाले की झोली भर जाती थी। साथ-साथ भोजन करते हुए बतरस में उन्हें बड़ा मजा आता था। अन्तिम नेवाले तक को बाँटकर खानेवाले मंगलेश जी का स्नेह, उनकी कविताई और उनकी कविताई में उनके विचार अब हमारे साथ हैं। जे.एन.यू. के छात्र-छात्राओं के बीच ढाबे पर बैठकर लम्बे समय तक कविता सुनाने का उन्होंने मुझे वचन दे रखा था। ऐसा हो न सका। मंगलेश भाई, आपकी पुण्य और स्नेहिल स्मृति को नमन।
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मंगलेश डबराल के साथ देवशंकर नवीन |
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