अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस
अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस बाइबिल के सुविख्यात अनुवादक एवं अनुवाद चिन्तक सन्त जेरोम (St. Jerome) की स्मृति में उनकी पुण्य तिथि के दिन तीस सितम्बर को मनाया जाता है। सन्त जेरोम अनुवादकों के संरक्षक सन्त के रूप में सुपरिचित थे। उनका निधन लम्बी बीमारी के गिरफ्त में आकर 30 सितम्बर 420 को बेतलेहेम में हुआ था। वे प्रसिद्ध ईसाई (धर्म-ग्रन्थ बाइबल के पहले लैटिन अनुवादक हैं। अनुवादकों, द्विभाषियों एवं पारिभाषिक शब्दविदों के संघों का एक अन्तरराष्ट्रीय समूह की पहल पर यूनेस्को द्वारा इस तिथि को ऐसा सम्मान दिया गया। सन् 1953 में गठित यह संघ इण्टरनेशनल फेडरेशन ऑफ ट्रान्सलेटर्स (एफ.आई.टी.) के नाम से जाना जाता है। एफ.आई.टी. ने सन् 1991 से 30 सितम्बर को हर वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाना शुरू किया। दुनिया के विभिन्न देशों में अनुवाद को बढ़ावा देने के प्रयास में जुटे अनुवादक समुदाय की एकजुटता दिखाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय अनुवादक संघ ने आधिकारिक तौर पर इस अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस का शुभारम्भ किया। वैश्वीकरण के प्रगतिकामी युग में इस व्यवसाय में गर्व प्रदर्शित करने के लिए एक ऐसा अवसर आवश्यक था, जब अनुवादकर्मी अपने उद्यम पर गौरवान्वित होएँ। और, ऐसे अवसर के लिए सन्त जेरोम की पुण्य तिथि को निर्विवाद तिथि माना गया।
सन्त जेरोम का मूल नाम युसेबियस सॉफ्रॉनियस हाइरोनिमस (Eusebius Sophronius Hieronymus) था। युसेबियस उनके पिता का नाम था। रोम के डलमटिया और पैन्नोनिया (जो अब आधुनिक इटालियन-क्रोटियन सीमा के पास इटली में है) प्रान्तों के सीमावर्ती इलाके में बसे शहर स्ट्रीडन में उनका जन्म सन् 340-347 के बीच हुआ। उनकी सर्वमान्य जन्म-तिथि का उल्लेख नहीं मिलता। रोम के प्रसिद्ध वैयाकरण एलियस डोनेटस (Aelius Donatus) की गुरुआई में उनकी शिक्षा-दीक्षा शास्त्रीय ढंग से हुई। उन्हीं से उन्होंने लैटिन और कुछ-कुछ ग्रीक भाषा सीखी, बाद में उन्होंने ग्रीक का विधिवत् अध्ययन किया। अठारह वर्ष की आयु में पोप लिबेरियस (Liberius) द्वारा रोम में उनका बपतिस्मा हुआ। उन्होंने उस दौर के गैर-यहूदी कवियों और लेखकों को खूब पढ़ा था, ईसाई साहित्य में उन दिनों उनकी कोई खास रुचि नहीं थी।
रोम में कई वर्षों की यात्रा करने के बाद, वे ट्रायर (Trier) में बस गए, वहीं उन्होंने पहली बार औपचारिक रूप से धार्मिक अध्ययन किया। सन् 370 में वे एक्विलीया (Aquileia) आ गए, जहाँ उनकी मुलाकात सन्त वलेरियान से हुई। सन् 373 के आसपास वे पूर्वीय रोम में धार्मिक नेतृत्व करने लगे। सन् 374-379 तक उन्होंने अन्तियॉक (Antioch) के दक्षिण पश्चिम रेगिस्तान में तपस्वी जीवन व्यतीत किया। वहाँ उनके दो साथियों की मृत्यु हो गई, सन् 373-374 की सर्दियों में वे खुद भी कई बार गम्भीर रूप से बीमार पड़े। इसी दौरान, उन्होंने लॉदीकिया के एक अग्रणी बाइबिल विद्वान अपोलीनारिस के सम्पर्क में आए। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने गम्भीरतापूर्वक बाइबल का अध्ययन किया। यहाँ उन्होंने एक धर्मान्तरित यहूदी के निर्देशन में हिब्रू सीखी। इसी दौरान उन्होंने एक यहूदी बाइबल की प्रतिलिपि तैयार की, जिसके अंश उनके नोट्स में संरक्षित मिले। वही प्रतिलिपि आज हिब्रू बाइबल के नाम से चर्चित है, जिसे नाजरेन्स (Nazarenes) लोग मैथ्यू के प्रमाणिक धर्मोपदेश मानते हैं। जेरोम ने इस हिब्रू बाइबल के कुछ हिस्सों का ग्रीक में भी अनुवाद किया। सन् 379 में सन्त पाउलीनस ने अन्तियॉक में जेरॉम को पुजारी मनोनीत किया।
सन् 380 के आसपास वे सन्त ग्रेगोरी नाजियन्जस की देखरेख में धर्मशास्त्र का अध्ययन करने कान्स्टेण्टिनॉपल चले गए। सन् 382 में वे रोम वापस लौटे और पोप डैमेसस के सचिव बन गए। उन्होंने जेरॉम को ईसोपदेश (Gospels) और भजन (Psalms) के अनुवाद में संशोधन करने की सलाह दी। सन् 384 में डैमेसस की मुत्यु हो जाने के कारण जेरोम को रोम छोड़ना पड़ा, क्योंकि रोमन समाज की मुखर और अक्सर कठोर आलोचना करने के कारण वहाँ उनके विरोधियों की संख्या बहुत हो गई थी। वे वापस अन्तियॉक लौट आए, फिर अलेक्जेण्ड्रिया, और अन्ततः सन् 386 में बेथलेहेम आ गए, जहाँ वे एक मठ में रहने लगे।
वहाँ उन्होंने बाइबिल के दोनों खण्डों (द’ ओल्ड टेस्टामेण्ट और द’ न्यू टेस्टामेण्ट) का लैटिन में अनुवाद किया, जिसे ग्यारह सदियों बाद वुल्गेट (The Vulgate) शीर्षक से ट्रेण्ट परिषद द्वारा बाइबिल के सरकारी संस्करण की मान्यता दी गई। हिब्रूओं के ईसोपदेश पर उनकी टीका भी उनकी कृतियों की लम्बी सूची का महत्त्वपूर्ण काम है। उन्हें लैटिन ईसाई पुजारी, धर्मशास्त्री और इतिहासकार के रूप में जाना जाता है। वे चर्च के डॉक्टर भी बन गए थे।
जेरॉम को ग्रीक बेहतरीन ज्ञान था, कुछ-कुछ हिब्रू भी जानते थे, किन्तु जब उन्होंने अनुवाद का काम शुरू किया तो यहूदी धर्मशास्त्र की टीका पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वे येरूशलेम गए। बेतलेहेम में एक मठ में उनके प्रवास की व्यवस्था हुई। प्रवास का वित्त-भार वहन पाउला (एक अमीर रोमन कुलीन) ने किया। वहीं उन्होंने अनुवाद कार्य पूरा किया।
सन् 382 में उन्होंने कहा कि आमतौर पर वेटस लैटिना में दर्ज न्यू टेस्टामेण्ट की लैटिन भाषा का परिष्कार शुरू किया। सन् 390 आते-आते वे मूल हिब्रू से हिब्रू बाइबिल का अनुवाद करने लगे। यद्यपि अलेक्जाण्ड्रिया से आया सेप्टुआगिण्ट के अनूदित अंश पहले से थे।
उनकी मान्यता थी कि विरूपित अनुवाद के कारण सेप्तुआगिण्ट को हेलेनिस्टिक विधर्मी तत्त्वों के साथ-साथ जम्निया (Jamnia) परिषद, या यहूदी धर्म की मुख्यधारा ने वैध यहूदी धर्म ग्रन्थ मानने से इनकार कर दिया।
उन्होंने सन् 405 में इस काम को पूरा किया। जेरोम के वुल्गेट से पहले, ओल्ड टेस्टामेण्ट के सभी लैटिन अनुवाद सेप्टुआजिण्ट पर ही आधारित थे, न कि हिब्रूआई पर। पूर्व अनूदित सेप्टुआजिण्ट के पाठ के बजाय हिब्रू पाठ का उपयोग करने का जेरोम का फैसला सेप्टुआजिण्ट प्रेरित वैचारिकता वाले ऑगस्टाइन सहित अधिकांश ईसाइयों की मान्यता के विरुद्ध था।
आधुनिक विद्वानों ने यद्यपि जेरोम के हिब्रू ज्ञान की गुणवत्ता पर सन्देह व्यक्त किया है। उनकी राय में ओल्ड टेस्टामेण्ट के जेरोम द्वारा अनूदित इयुक्स्टा हेब्रेयॉस का मुख्य स्रोत ग्रीक हेक्साप्ला है।
उनकी पैट्रिस्टिक (Patristic) टिप्पणियाँ यहूदी परम्परा से गहन तालमेल रखती हैं और फिलो तथा अलेक्जाण्ड्रिया स्कूल के बाद गूढ़ और रहस्यमय बारीकियों से परिपूर्ण है। अपने समकालीनों के विपरीत वे हिब्रू बाइबिल अपोक्रायफा और प्रोटोकैनेनिकल (Protocanonical) पुस्तकों के हेब्रायका वर्टास (Hebraica Veritas) के फर्क पर जोर देते हैं।
सन् 410 में रोम पर बर्वर अलैरिक के हमले के बाद ढेरो शरणार्थियों को उस पवित्र भूमि में सुरक्षा की आवश्यकता हुई, जिसके लिए जेरोम ने लिखा कि उनकी मदद के लिए मैंने सारे अध्ययन किनारे कर दिया। अब हमें सारे आर्ष-वचनों का अनुवाद करना होगा, पवित्र शब्द बोलते रहने की जगह हमें वह जरूरी काम करना चाहिए। मृत्यूपरान्त उनके पार्थिव शरीर को रोम के सन्त मैरी मेजर में दफनाया गया।
कैथोलिक चर्च, पूर्वी रूढ़िवादी चर्च, लूथरवादी चर्च, और इंग्लैण्ड (अंग्रेजी ऐक्य) के चर्च द्वारा उन्हें एक सन्त की मान्यता दी गई। उनकी पुण्य तिथि तीस सितम्बर को उनका स्मृति दिवस मनाया जाता है। यही दिवस अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस है।
प्रमाणित सत्य है कि अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाने की इस शृंखला में अन्तर्राष्ट्रीय अनुवादक संघ (एफ.आई.टी.) की विशिष्ट भूमिका है। अब तक दुनिया भर के पचपन देशों में शताधिक पेशेवर संगठनों एवं हजारो अनुवादकों का इस संघ से जुड़ाव हो चुका है। इस संघ का लक्ष्य अनुवाद एवं अनुवचन की गतिविधियों में व्यावसायिकता को बढ़ावा देना है।
यह संघ सभी देशों में अनुवाद एवं अनुवचन की गतिविधियों की स्थितियों में सुधार लाने और अनुवादकों के अधिकारों एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को बनाए रखने का निरन्तर प्रयास करता है। अनुवाद एवं अनुवादकों की वैधानिक एवं सामाजिक स्थिति के संरक्षण और सुधार के लिए सन् 1976 में यूनेस्को द्वारा नैरोबी सम्मेलन में की गई सिफारिश, अनुवाद-परम्परा के इतिहास में एक प्रस्थान-बिन्दु है। सन् 1994 के संशोधित अनुवादक-घोषणा-पत्र में अनुवादकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों तथा संघों में उनके संगठन के सिद्धान्तों का विधिवत् उल्लेख है।
इस संघ का प्रमुख उद्देश्य है --
• अनुवादकों, द्विभाषियों एवं पारिभाषिक शब्दविदों के संघों को एफ.आई.टी. से सम्बद्ध कराना;
• जिन देशों में पहले से ऐसे संघ नहीं हैं, वहाँ ऐसे संघों के गठन को प्रोत्साहित करना;
• अनुवाद-कर्म के विधानों, तकनीकी उपकरणों, प्रशिक्षणों एवं इस पेशे सम्बद्ध उपयोगी मसलों की जानकारी के साथ एफ.आई.टी. की सदस्यता उपलब्ध कराना;
• अनुवादकों की हित-रक्षा के साथ सभी सदस्य-संघों के बीच सद्भाव बनाना;
• दुनिया भर में अनुवादकों के नैतिक एवं भौतिक अधिकारों को बरकरार रखना; तथा
• अनुवादकों, द्विभाषियों एवं पारिभाषिक शब्दविदों के व्यवसायों की मान्यता को बढ़ावा देने के लिए, समाज में अनुवादकों की स्थिति को बेहतर बनाना और
• अनुवाद को विज्ञान एवं कला के रूप में बढ़ावा देना।
इसके तीन क्षेत्रीय केन्द्र सक्रिय हैं—
• एफ.आई.टी. यूरोप,
• एफ.आई.टी. लैटिन अमेरिका और
• एफ.आई.टी. उत्तरी अमेरिका।
इनके अलावा एक चौथा केन्द्र एशिया में भी माना जाता है।
ये केन्द्र अपने क्षेत्रों में एफ.आई.टी. की गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।
मजबूत जन-सम्पर्क बनाए रखने की दिशा में भी एफ.आई.टी. बड़ी निष्ठा से काम करता है। इसकी त्रैमासिक पत्रिका बैबेल (Babel) और त्रैमासिक बुलेटिन ट्रान्सलेटियो उल्लेखनीय प्रकाशन हैं।
बैबेल में दुनिया भर के स्तरीय लेख एवं ट्रान्सलेटियो में एफ.आई.टी. की गतिविधियों, समितियों और सदस्य संघों के बारे में जानकारी तथा सम्मेलनों की कार्यवाही प्रकाशित होती है।
इस संघ का ई मेल secretariat@fit-ift.org तथा पता International Federation of Translators, c/o REGUS, 57 rue d'Amsterdam, 75008 PARIS, France (अन्तर्राष्ट्रीय अनुवादक संघ, द्वारा रेगस, 57 रियू द’अम्स्टर्डम, 75008 पेरिस, फ्रांस) है।
सन् 1999 से एफ.आई.टी. का अस्थाई सचिवालय (20 घण्टे एक सप्ताह) भी शुरू हुआ। यह सचिवालय एफ.आई.टी. की सदस्यता, प्रशासन और गतिविधियों के लिए योजक का काम करता है। ग्यारह वर्षों तक कनाडा में संचालित होने के बाद एफ.आई.टी. सचिवालय अक्टूबर 2010 के बाद से स्विट्जरलैण्ड में अवस्थित हो गया। इसके कार्यकारी निदेशक जीन्नेट ऑस्ट्रेड (Jeannette Orsted) हैं। पता है—
International Federation of Translators
Secretariat/Aeschenvorstadt 71, CH-4051 Basel,
Suisse/Switzerland
एफ.आई.टी. सम्मेलन के लिए विभिन्न वर्षों में अनुवाद से जुड़े अत्यन्त ज्वलन्त विषय सोचे गए, वे विषय हैं—
• अनुवाद : एक महत्त्वपूर्ण शृंखला (सन् 1992),
• अनुवाद : एक व्यापक उपस्थिति (सन् 1993),
• अनुवाद के बहुफलक (सन् 1994),
• अनुवाद : विकास की कुँजी (सन् 1995),
• अनुवादक और कॉपीराइट (सन् 1996, उसी वर्ष यूनेस्को ने अन्तरराष्ट्रीय कॉपीराइट दिवस शुरू करने का भी विचार बनाया),
• सही दिशा में अनुवाद (सन् 1997),
• बेहतर अनुवाद की प्रथा (सन् 1998),
• अनुवाद : अन्तरण (सन् 1999),
• अनुवाद की आवश्यकताओं की सेवा प्रौद्योगिकी (सन् 2000),
• अनुवाद और नैतिकता (सन् 2001),
• सामाजिक परिवर्तन के घटक के रूप में अनुवादक (सन् 2002),
• अनुवादक के अधिकार (सन् 2003), अनुवाद,
• सशक्त बहुभाषिकता और सांस्कृतिक विविधता (सन् 2004)।
30 सितम्बर, 2008 को क्रिस्टल ह्यूस लिमिटेड ने भाषा संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहयोग से अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस आयोजित किया, जिसमें एस.डी.एल. ट्रैडॉस जैसे अनुवाद सॉफ्टवेयर (व्यावसायिक उपकरण) के उपयोग से अनुवाद की दक्षता और बेहतरी सुनिश्चित करने की ओर ध्यान आकर्षित किया गया।
संघ की साठवीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में एफ.आई.टी. के आयोजनों की खूब धूम रही। अगस्त 2014 में बर्लिन में बीसवाँ विश्व सम्मेलन साठवीं वर्षगाँठ के रूप में मनाया गया। पूरे वर्ष और भी कई आयोजन हुए। एफ.आई.टी. कांग्रेस के वार्षिक समारोहों में अनुवाद की महत्ता से सन्दर्भित विभिन्न विषयों पर गम्भीरतापूर्वक विचार होता रहा है। इसका अगला सांविधिक सम्मेलन 30 नवम्बर से 1 दिसम्बर 2021 को तथा विश्व सम्मेलन 2-4 दिसम्बर 2021 को आयोजित होनेवाला है।
ज्ञानवर्द्धक!
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