Friday, November 15, 2019

कमलेश्वर का कथा प्रस्थान




आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य को नया मोड़ देने वाले प्रमुख रचनाकारों में कमलेश्वर का नाम आदर से लिया जाता है। रेडियो, दूरदर्शन और फिल्म उद्योग को भी उनकी नवोन्मेषी प्रतिभा का प्रभूत लाभ मिला है। न केवल जन साधारण को हिन्दी-साहित्य की ओर आकर्षित करने, बल्कि बुद्धिजीवियों के विचार-मन्थन को नई दिशा देने में भी उनकी रचनाएँ सक्षम रही हैं। उनके नए संग्रह कथा प्रस्थानको देखकर यह धारणा एक बार फिर पुष्ट होती है।
उनकी अठारह कहानियों का यह संकलन हिन्दी कथा-साहित्य की लम्बी सूची में कई अर्थों में विशेष महत्त्व की हैं। ये कहानियाँ उनके जीवन के उन दिनों की कहानियाँ हैं, जब वे क्रान्तिकारी समाजवादी पार्टी से सम्बद्ध थे और क्रान्तिकारियों को पत्र पहुँचानेवाले हरकारे का काम किया करते थे। देश अंग्रेजों के इशारे पर चल रहा था। उन दिनों कमलेश्वर ने पूरी तरह यह तय नहीं किया था कि साहित्य ही उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम होगा। कथा प्रस्थानकी कहानियों में किकर्तव्यविमूढ़ता से पुरजोर अभिव्यक्ति की ओर प्रस्थान करने वाले कमलेश्वर की जागरूकता, सृजनशीलता और विलक्षण कथा-कौशल का परिचय मिलता है।
आज के कमलेश्वर की ऊँचाई को ध्यान में रखकर इन कहानियों का परीक्षण करने से सम्भव है कि न्याय न हो पाए, कमलेश्वर के आज के रचनात्मक कौशल से इन कहानियों का कन्धा न मिल पाने की पूरी सम्भावना है। इनका प्रकाशन भले ही बाद में हुआ, पर सारी कहानियाँ सन् 1946-1953 के बीच लिखी गई हैं। पराधीन भारत की साँसत में भी कमलेश्वर के उद्दाम साहस का प्रशंसनीय उदाहरण इन कहानियों में दिखता है।
इन कहानियों के बारे में लेखक का मन्तव्य है--मैं इन्हें अपनी कमजोर कहानियाँ मानता रहा हूँ या कहूँ कि लिखने के बाद मुझे इनसे सन्तुष्टि नहीं मिली है, इसलिए इनमें से कई कहानियाँ लिखे जाने के बाद पड़ी रहीं और जब कभी किसी सम्पादक मित्र ने बहुत माँग की और मैं उनके लिए किसी संगत विषय पर कहानी लिखने का दायित्व पूरा नहीं कर पाया तो मित्रता और जरूरत के नाते कोई पड़ी हुई कहानी प्रकाशन योग्य मान ली गई।ऐसी कहानियों में लेखक माटी सुबरन बरसाय’, ‘अजनबी लोग’, ‘तंग गलियों के मकान’, ‘सरोकार’, ‘पीला गुलाब’, ‘अजनबी’, ‘अधूरी कहानी’, ‘कॉमरेडआदि को गिनते हैं। हैरत की बात यह है कि इन कहानियों को वे प्रकाशन-योग्य नहीं मानते थे। उनके इस स्पष्टीकरण में विरोधाभास दिखता है। उल्लेखनीय है कि जिन दिनों कमलेश्वर को अभिव्यक्ति के रास्ते की तलाश थी, उन दिनों देश की उत्पीड़ित स्थिति और सामान्य जन-जीवन में व्याप्त विकृति से उनका मन इतना झंकृत हो चुका था कि फरार’, ‘नंगा आदमी’, ‘सीने का दर्द’, ‘कॉमरेड’, ‘रात, औरत और गुनाह’, ‘तंग गलियों के मकानआदि कहानियों की कथा-भूमि उन्होंने तलाश ली। परतन्त्र भारत की राजनीतिक शामत, स्वदेशी राजनेताओं की प्रपंचपूर्ण नीति, सामाजिक-पारिवारिक सम्बन्धों में ठुकती हुई कील, मानवता के बीच फटती हुई दरार, अर्थ-चक्र की भयावहता उनकी इन कहानियों में जीवन्त हुई है। इन विसंगतियों पर यहाँ लेखक का स्पष्ट नजरिया दिखता है।
प्रारम्भिक अंश में पाठकों से बहुत मशक्कत करवाने के बावजूद इस संग्रह की अनेक कहानियाँ बड़े प्रभावी ढंग से समाप्त हुई हैं। इनमें रचना-काल की सामाजिक पृष्ठभूमि प्राणवन्त हो उठी है। कॉमरेडकहानी का राजनीतिक ढोंग समकालीन नीतिवादियों का पर्दाफाश करता है। चार दशक पूर्व लिखी जाने के बावजूद विषयगत सूक्ष्मता के कारण यह कहानी आज भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। अपने कथ्य और शिल्प के लिए तंग गलियों के मकानकहानी अत्यन्त प्रशंसनीय है। यहाँ देह सुख की सीमाओं का साधारणीकरण अत्यन्त प्रभावकारी ढंग से हुआ है। कथाकार ने इस कहानी में अपने सूक्ष्मतर दृष्टिकोण का परिचय दिया है। मौलिक रूप से यह कहानी और रात, औरत और गुनाहस्त्री जीवन पर केन्द्रित है। लेकिन जहाँ पहले की कहानियों की नारियों का सम्बन्ध देह सुख से है, वहीं बाद वाली कहानी का सम्बन्ध नारियों के सन्तानसुख से है। दोनों अर्थों में ये कहानियाँ औरत के स्वरूप को पारदर्शी ढंग से प्रस्तुत करती हैं।
जन्म’, ‘नंगा आदमी’, ‘अनाथ पिण्डक सुदत्त’, ‘कर्तव्य’, ‘जिन्दगी की पटरी’, ‘अधूरी कहानीआदि कहानियाँ सामान्य जनजीवन की विविधताओं का परिचय देती हैं। आज के समर्थ और समृद्ध रचनाकार कमलेश्वर के अभ्यास-काल का स्वरूप समझने की दिशा में इस संकलन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है और बड़े कहानीकार की प्रारम्भिक रचनाओं के रूप में हिन्दी-साहित्य की निधि तो है ही।
नवभारत टाइम्स, 01.11.1992
कथा प्रस्थान/कमलेश्वर


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