Thursday, November 28, 2019

अमराई के अठारह फूल/पद्मा सचदेव की पुस्‍तक ‘अमराई’



अमराई के अठारह फूल

पद्मा  सचदेव की पुस्‍तक अमराई

हिन्दी में संस्मरण और साक्षात्कार साहित्य की परम्परा अब नई नहीं है। साहित्यिक विधा के रूप में न सही पर सम्बद्ध रचनाकार और रचनाकारों की कृतियों के मूल्यांकन में इस साहित्य-शाखा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हिन्दी और डोगरी की प्रसिद्ध लेखिका पद्मा  सचदेव द्वारा बसाई गई अमराईइस साहित्य-शाखा की एक संख्या भर नहीं, देश के गिने-चुने अठारह फलदायी पेड़ों की शीतल और ऊर्जस्वित घनच्छाया का समुच्चय है, जिनकी पूरी जिन्दगी देश, जनता और साहित्य की सेवा में लगी रही है।
डोगरी की पहली आधुनिक कवयित्री पद्मा  सचदेव को सन् 1969 में प्रकाशित मेरी कविता मेरे गीतपुस्तक के लिए सन् 1971 में डोगरी भाषा हेतु साहित्य अकादेमी द्वारा सम्मानित किया गया था। पद्मा  सचदेव की सबसे बड़ी खासियत उनकी भाषा-शैली है। उनकी कविता क्या, गद्य में भी लोक-गीतों और लोरियों का लय एवं माधुर्य रहता है, लयात्मकता उनकी रचनाओं का प्राण-तत्त्व है। पाठक मोहित हो-होकर उनके रचना-संसार में डूबते हैं और आह्लादित होते हैं। उल्लेखनीय है कि डोगरी लोक-गीतों से प्रभावित होकर बारह-तेरह वर्ष की उम्र में ही पद्मा  सचदेव ने डोगरी कविता लिखना प्रारम्भ किया था। हिन्दी में साक्षात्कार और संस्मरणों के क्षेत्र में पद्मा  सचदेव का विशिष्ट स्थान है, यह पुस्तक अमराईउस कथन को और भी विशिष्ट और ऊँचा करती है।
देश भर के हिन्दी और हिन्दीतर भाषाओं के एक-से-एक रचनाकारों से पद्मा  सचदेव का आत्मीय सम्बन्ध रहा है। प्रख्यात लेखक, पत्रकार डॉ धर्मवीर भारती के निधन के बाद पद्मा  सचदेव के संस्मरण कुछ अखबारों में छपे थे। उन संस्मरणों ने उन क्षणों को इतनी तल्लीनता से रेखांकित किया था कि पूरा का पूरा दृश्य जीवन्त हो उठा था। इस पुस्तक में भी त्रिलोचन शास्त्री, नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, धर्मवीर भारती, सुमित्रानन्दन पन्त, प्रभाकर माचवे, कुर्रतुल ऐन हैदर, इन्दिरा गोस्वामी, यू.आर. अनन्तमूर्ति, शिवानी जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों के साथ बिताए अपने समय का शब्द-चित्र उन्होंने बड़ी जादूगरी से उकेड़ा है। इन रचनाओं द्वारा उन चिन्तकों के जीवन से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी मिलती है। सवालों के शिष्टाचार द्वारा पद्मा  सचदेव बडे़-बड़े विद्वानों से वैसे तथ्य भी निकाल लेती हैं, जिसे वे खुद विस्मृति के अन्धेरे कुएँ में डाल चुके होते हैं। कौशल से वे संवाद को इस तरह रोचक बना देती हैं कि हँसते-हँसते लोग बड़ी सहजता से बड़ी-बड़ी गूढ़ बातें सामने रख देते हैं। और, उस बातचीत से हासिल हुई अनमोल बातें वे अपने पाठकों को उपलब्ध कराती हैं। कुर्रतुल ऐन हैदर, इन्दिरा गोस्वामी, केदारनाथ सिंह, नामवर सिंह से हुई बातचीत की पंक्तियाँ इस स्थापना को समर्थन देती हैं।
तय करना कठिन है कि बहुमुखी प्रतिभा की स्वामिनी पद्मा  सचदेव की रचनाशीलता को कविता के क्षेत्र में प्रमुखता दी जाए या गीत में या कि संस्मरण और साक्षात्कार में! थोड़े दिनों पूर्व डोगरी कविता में प्रेमविषय पर आलेख पढ़ते हुए उन्होंने एक बार फिर से श्रोताओं को चौंका दिया। उनकी आलोचनात्मक दृष्टि, भाषाई गतिकता और कथात्मक पुट का कौशल उस पूरे पाठ में लगातार दिखता रहा।
साहित्य से जुड़े देश-देशान्तर के हर व्यक्ति जानते हैं कि पद्मा  सचदेव का सामाजिक सरोकार क्षेत्र, भाषा, साहित्य, राजनीति जैसे किसी वाद से प्रभावित नहीं है। उन्हें अपनी मातृभाषा से गहन अनुराग है, पर इस मूल्य पर किसी अन्य भाषा से विराग नहीं है; साहित्य उनका प्रिय क्षेत्र है, पर इस कारण संगीत, चित्रकला, समाजशास्त्र से उन्हें विरक्ति नहीं है। उनके अनुराग का विषय-फलक विराट है। अमराईमें संकलित संस्मरणों और साक्षात्कारों से भी यह बात पुष्ट होती है। जिस किसी क्षेत्र के लोग जिस भी दिशा में क्रियाशील हैं और उनके जीवन और कर्म में उन्हें थोड़ी भी प्रेरणास्पद बातें दिखती हैं, तो अपने पाठकों के लिए उनके चिन्तन-फलक को उजागर करना अपना धर्म समझती हैं। उनकी मूल प्रतिबद्धता जनता से है, उसके लिए सम्भावित हर मंगलकारी घटनाओं से है। यही कारण है कि अमराईमें एक तरफ त्रिलोचन शास्त्री हैं तो दूसरी तरफ फारुख अब्दुल्ला, सुमित्रानन्दन पन्त हैं, तो बख्शी गुलाम मुहम्मद और मलिका पुखराज, संसार चन्द बडू भी।
इस संकलन के संस्मरणों के शीर्षक से ही भाषा और कौशल का जादू शुरू हो जाता है। ललित शास्त्री के साथ हुई बातचीत के लिए कजरी उदास है’, त्रिलोचन शास्त्री के लिए रमता जोगी’, पन्तजी के लिए बारिश के मैके का कवि’, भारती जी के लिए अलाहाबादै के तो हैं’, अनन्तमूर्ति के लिए अक्खरों का ग्वालाजैसा शीर्षक देना उनके भाषाई संस्कार का परिचय देता है। लोक-भाषा और लोक-रुचि के रंग उनके चिन्तन और अभिव्यक्ति में संस्कार की तरह बसे हुए हैं, गाँव-कस्बे का वातावरण, लोकाचार एवं प्राकृतिक सुषमा उनके शब्द-शब्द में खेलते नजर आते हैं। साहित्य सहवास की तीसरी मंजिल के जिस घर के बरामदे में कदम्ब के फूल झुक आते हैं, जहाँ धरती से आती बेला, चमेली के फूलों की सुगन्ध बिन्दास घूमती रहती है, जहाँ अनगिनत किताबों को सुलाते-सुलाते साँझ की बयार खुद भी उनीन्दी हो उठती है,...बम्बई में वही घर डॉ धर्मवीर भारती का घर है।शब्द-योजना और भाषा प्रयोग का यह उदाहरण इस पुस्तक की पंक्ति-पंक्ति से दिया जा सकता है।
कई प्रकाशित/अप्रकाशित पुस्तकों की लेखिका पद्मा  सचदेव का एक आत्मविश्वास भी इस पुस्तक में झलकता है कि उन्होंने पुस्तक प्रारम्भ करने से पूर्व पाठकों के लिए भूमिका या पूर्वकथ्य जैसी कोई कुंजी नहीं पकड़ाई। गोया, अपनी प्रस्तुति से वे पूरी तरह आश्वस्त हैं, किसी वकालत, या व्याख्या की आवश्यकता नहीं, जो कुछ कहना होगा विषय-प्रसंग खुद कहेगा।...तथ्य है कि पूर्वकथ्य के बिना भी पाठकों को यहाँ सब कुछ मिला, शायद अपेक्षा के अनुकूल, पर हर अच्छी कृति अपनी समाप्ति पर पाठकों को असन्तोष तो देती ही है। ...यूँ इन प्रसंगों में कहीं-कहीं पद्मा  सचदेव आत्मश्लाघा और आत्म-विज्ञापन से घिरी दिखती हैं, पर उबरने में भी उन्हें देर नहीं लगती।
ये सारे प्रसंग पद्मा  सचदेव को संस्मरणों का खजाना साबित करते हैं। प्रतीत होता है कि अभी उनकी स्मृतियों में बहुत कुछ बचा है, जिसकी प्रतीक्षा पाठकों को है। शायद अगली पुस्तक में पूरी हो।
संस्मरणों की मोहक अमराइयाँ, हिन्दुस्तान (दैनिक, नई दिल्ली), नई दिल्ली, 02.07.2000
अमराई/पद्मा  सचदेव/राजकमल प्रकाशन/पृ. 208/रु. 175.00

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